109- श्रीवराहावतारका वर्णन

 

 

सूतजी कहते हैं-पृथ्वीने जब भगवान् नारायणकी इस प्रकार स्तुति की तो परम समर्थ भगवान् केशव उसपर प्रसन्न हो गये। फिर कुछ समयतक वे योगजनित ध्यान-समाधिमें स्थित रहे। तदनन्तर वे मधुर स्वरमें पृथ्वीसे कहने लगे'देवि! मैं पर्वतों और वनोंसहित तुम्हारा शीघ्र ही उद्धार करूँगा, साथ ही पर्वतसहित सभी समुद्रों, सरिताओं और द्वीपोंको भी धारण करूँगा।'

इस प्रकार भगवान् माधवने पृथ्वीको आश्वासन देकर एक महान् तेजस्वी वराहका रूप धारण किया और छः हजार योजनकी ऊँचाई तथा तीन हजार योजनकी चौड़ाईमें-यों नौ हजार योजनके परिमाणमें अपना विग्रह बनाया। फिर अपने बायीं दाढ़की सहायतासे पर्वत, वन, द्वीप और नगरोंसहित पृथ्वीको समुद्रसे ऊपर उठा लिया। कई विज्ञानसंज्ञक पर्वत जो पृथ्वीमें लगे हुए थे, वे समुद्र में गिर पड़े। उनमें कुछ तो संध्याकालीन मेघोंकी तरह विचित्र शोभा प्राप्त कर रहे थे और कुछ निर्मल चन्द्रमाकी तरह भगवान् वराहके मुखके ऊपर लगे सुशोभित हो रहे थे। इनमें कुछ पर्वत भगवान् चक्रपाणिके हाथमें इस प्रकार सुशोभित हो रहे थे, मानो कमल खिले हों। इस प्रकार भगवान् वराह अपनी दाढ़पर एक हजार वर्षांतक समुद्रसहित पृथ्वीको धारण किये रह गये। उस दाढ़पर ही कई युगोंके कालका परिमाण व्यतीत हो गया। फिर इकहत्तरवें कल्पमें कर्दमप्रजापतिका प्राकट्य हुआ। तबसे अविनाशी भगवान् विष्णु पृथ्वीके आराध्यदेव माने जाते हैं। परम्पराके अनुसार यही उत्तम वराह-कल्प'कहलाया।

तदनन्तर पृथ्वीने भगवान्से प्रश्न किया'भगवन्! आपकी प्रसन्नताका आधार क्या और कैसा है ? प्रातः एवं सायंकालकी संध्याका स्वरूप क्या है ? भगवन्! पूजामें आवाहन, स्थापन और विसर्जन कैसे किये जाते हैं तथा अर्घ्य, पाद्य, मधुपर्क-स्नानकी सामग्री, अगुरु, चन्दन और धूप कितने प्रमाणमें ग्राह्य हैं? शरद्, हेमन्त, शिशिर, वसंत, ग्रीष्म और वर्षा ऋतुओंमें आपकी आराधनाका क्या विधान है? उस समय उपयोग करने योग्य जो पुष्प और फल हैं तथा करने योग्य और न करने योग्य तथा शास्त्रसे निषिद्ध जो कर्म हैं, उन्हें भी बतानेकी कृपा करें। ऐश्वर्यवान् पुरुष कर्मोंका भोग करते हुए आपको कैसे प्राप्त करते हैं? कर्मों तथा इनके फलोंका दूसरेमें कैसे संक्रमण होता है, आप यह भी कृपाकर बतायें। पूजाका क्या प्रमाण है, प्रतिमाकी स्थापना किस प्रकार और किस प्रमाणमें होनी चाहिये? भगवन्! उपवासकी क्या विधि है और उसे कब किया जाय? शुक्ल, पीत और रक्त वस्त्रोंको किस प्रकार धारण करना चाहिये? उन वस्त्रोंमें कौन वस्त्र किनके लिये हितकारक होता है? प्रभो! आपके लिये फल-शाक आदि कैसे अर्पण किये जायँ ? धर्मवत्सल! मन्त्रके द्वारा आमन्त्रित करने पर आये हुए देवताओंके लिये शास्त्रानुकूल कर्मका अनुष्ठान कैसे हो? प्रभो! भोजन कर लेनेके बाद कौन-सा धर्म-कर्म अनुष्ठेय है तथा जो लोग एक समय भोजनकर आपकी उपासना करते हैं, आपके मार्गका अनुसरण करनेवाले उन व्यक्तियोंको कौनसी गति प्राप्त होती है? माधव! कृच्छू और सांतपनव्रतके द्वारा जो आपकी उपासना करते हैं तथा जो वायुका आहार करके भगवान् श्रीकृष्णकी उपासना करनेवाले हैं, उन्हें कौन-सी गति मिलती है? प्रभो! आपकी भक्तिमें व्यवस्थित रहकर बिना लवणका भोजन करके जो आपकी आराधना करते हैं तथा जो आपकी भक्ति करते हुए पयोव्रत रखते हैं और माधव! जो प्रतिदिन गौको ग्रास देकर आपकी शरणमें जाते हैं, प्रभो! उन्हें कौन-सी गति मिलती है?' भिक्षापर जीविका चलाकर गृहस्थधर्मका पालन करते हुए जो आपकी ओर अग्रसर होते हैं तथा जो आपके कर्मों में परायण रहकर आपके क्षेत्रोंमें प्राण त्यागते हैं, वे महाभाग किन लोकोंमें जाते हैं? जो पञ्चाग्नि-साधनकर उसका फल भगवान् माधवको समर्पण करते हैं तथा जो पञ्चाग्निव्रतमें अथवा कण्टकमय शय्यापर रहकर भगवान् अच्युतका दर्शन करते हैं, वे किस उत्तम गतिको पाते हैं ? श्रीकृष्ण! आपके भक्ति-परायण जो व्यक्ति गोशालामें शयन करके आपके शरणागत बने रहते हैं तथा शाकाहार करके आप भगवान् अच्युतकी ओर अग्रसर होते हैं, उनकी कौन-सी गति निश्चित है? भगवन्! जो मानव कण-भक्षण करके तथा पञ्चगव्य पानकर आप माधवकी शरण ग्रहण करते हैं, जो यवके आहारपर तथा गोमय पीकर आपकी उपासना करते हैं, नारायण! उनके लिये वेदोंमें कौन-सी गति एवं विधि निर्दिष्ट है? जो यावक (जौसे बने पदार्थ) खाकर आपकी उपासना करते हैं तथा आपकी सेवामें सदा संलग्न रहकर दीपकको सिरसे प्रणाम करके आपकी अर्चना करते हैं एवं जो प्रतिदिन आपके चिन्तनमें संलग्न रहकर दुग्धाहारपर रहते हैं, वे कौन गति पाते हैं? आपके चिन्तनमें जो समय व्यतीत करनेवाले तथा 'अश्माशन' व्रत करके आपकी सदा उपासना करनेवाले हैं, उन्हें कौन गति सुलभ होती है? भगवन्! भक्ति-परायण जो विद्वान् व्यक्ति दूर्वाका आहार करके आपकी उपासना करते हैं एवं अपने धर्म-गुणका आचरण करते हुए प्रीतिपूर्वक घुटनेके बल बैठकर आपकी अर्चना करते हैं, उन्हें कौन गति मिलती है? यह सब आप बतानेकी कृपा करें। भगवन् ! पृथ्वीपर सोनेवाला तथा पुत्र, स्त्री और घरसे सदा उदासीन होकर जो आपकी शरणमें चला जाता है, देवेश्वर! उसे कौन-सी सिद्धि मिलती है? यह बतानेकी कृपा कीजिये।

माधव! आप सम्पूर्ण रहस्योंके ज्ञाता, विश्वपिता और सम्पूर्ण धर्मों के निर्णायक हैं, अत: योग और सांख्यमें निर्णीत सर्वहितावह यह निर्णययुक्त उपदेश आप ही कर सकते हैं। जो कृष्ण-नामका कीर्तन अथवा 'ॐ नमो नारायणाय' कहकर आपकी उपासना करते हैं, उन्हें कौन-सी गति मिलती है? आप कृपापूर्वक यह भी बतायें।

भगवन् ! मैं आपकी शिष्या और दासी हूँ। भक्तिभावसे आपकी शरणमें उपस्थित हूँ। जगद्गुरो! मुझपर आपकी कृपा है, लोकमें धर्मके प्रचारहेतु आप इस धर्मरहस्यको मुझसे कहनेकी कृपा करें-यह मेरी आकांक्षा है।