62-आरोग्य-व्रत

अगस्त्यजी कहते हैं-महाराज! अब आरोग्य नामक एक दूसरा परमपवित्र व्रत बताता हूँ, जिसके प्रभावसे सम्पूर्ण पाप भस्म हो जाते हैं। इस व्रतमें आदित्य, भास्कर, रवि, भानु, सूर्य, दिवाकर एवं प्रभाकर-इन सात नामोंसे भगवान् सूर्यकी विधिपूर्वक पूजा करनी चाहिये। इस व्रतमें षष्ठी तिथिके दिन भोजनकर सप्तमीको प्रात:काल भगवान् भास्करकी पूजा करते हुए उपवास करना चाहिये। फिर अष्टमी तिथिको भोजन करे, यही इस व्रतकी विधि है। इस प्रकार पूरे एक वर्षतक जो भगवान् सूर्यकी पूजा करता है, उसे इस जन्ममें आरोग्य, धन तथा धान्य सुलभ हो जाते हैं और परलोकमें वह उस पवित्र स्थानपर पहुँचता है, जहाँ जाकर पुनः संसारमें जन्म नहीं लेना पड़ता।

प्राचीन समयकी बात है, अनरण्य नामके महान् प्रतापी राजा थे, जिनके वशमें सम्पूर्ण पृथ्वी थी। राजन् ! उन महाभाग नरेशने यह व्रत किया तथा उस दिन भगवान् भास्करकी पूजा भी की, जिसके फलस्वरूप भगवान् सूर्य उनपर प्रसन्न हो गये और राजा अनरण्यको उन्होंने उत्तम आरोग्य प्रदान कर दिया।

राजा भद्राश्वने पूछा-राजन्! आपने राजाके आरोग्य होनेकी बात कही तो क्या इसके पूर्व वे रोगी थे? भला, वे सार्वभौम राजा रोगग्रस्त कैसे हो गये?

अगस्त्यजी कहते हैं-राजन् ! राजा अनरण्य चक्रवर्ती सम्राट थे; साथ ही वे अत्यन्त रूपवान् एवं यशस्वी भी थे। एक समयकी बात है-वे परम पराक्रमी राजा दिव्य मानसरोवरपर गये, जहाँ देवताओंका निवास है। वहाँ उन्हें सरोवरके बीचमें एक बड़ा-सा श्वेत कमल दीखा। उस कमलपर अंगूठेकी आकृतिके बराबर एक दिव्य पुरुष बैठे थे, जिनका शरीर बड़ा तेज:पूर्ण था। उनकी दो भुजाएँ थीं और वे लाल वस्त्रोंसे आच्छादित थे। उस कमलको देखकर राजा अनरण्यने अपने सारथिसे कहा-'तुम किसी प्रकार इस कमलको ले आनेका प्रयत्न करो। कारण, जब मैं इसे अपने सिरपर धारण करूँगा, तब संसारमें मेरी बड़ी प्रतिष्ठा होगी, अतः देर मत करो।'

राजन्! अनरण्यके ऐसा कहनेपर सारथि उस सरोवरमें घुसा। फिर उस कमलको लेनेके लिये आगे बढ़ा और उसे स्पर्श करना चाहा, इतनेमें वहाँ बड़े उच्च स्वरसे हुंकारकी ध्वनि हुई। उस शब्दके प्रभावसे सारथिके हृदयमें आतङ्क छा गया। वह जमीनपर गिरा और उसके प्राण निकल गये तथा राजा भी कुष्ठग्रस्त, बलहीन एवं विवर्ण हो गये। अपनी ऐसी स्थिति देखकर राजा-'यह क्या हुआ?' इस चिन्तामें पड़ गये और वहीं रुके रहे। इतने में ही महान् तपस्वी ब्रह्मपुत्र बुद्धिमान् वसिष्ठजी वहाँ आ गये और उन्होंने राजा अनरण्यसे पूछा-'राजन् ! तुम यहाँ कैसे पहुँचे तथा तुम्हारे शरीरकी ऐसी स्थिति कैसे हुई? अब मैं तुम्हारे लिये क्या करूँ? यह बताओ।' राजन्! वसिष्ठजीके इस प्रकार पूछनेपर अनरण्यने उनसे कमलसम्बन्धी सम्पूर्ण वृत्तान्तका वर्णन किया। राजाकी बात सुनकर मुनिने कहा'राजन्! तुम साधु थे, पर तुम्हारे मनमें असाधुता आ गयी। इसीलिये तुमपर कुष्ठरोगका आक्रमण हो गया है।' मुनिके ऐसा कहनेपर राजाने हाथ जोड़कर काँपते हुए पूछा-'विप्रवर! मैं साधु या असाधु कैसे हूँ और मेरे शरीरमें यह कोढ़ कैसे हो गया? यह सब आप बतानेकी कृपा करें।'

वसिष्ठजी बोले-राजन्! इस 'ब्रह्मोद्भव' कमलकी तीनों लोकोंमें प्रसिद्धि है। इसके दर्शनकी बड़ी भारी महिमा है। इससे सम्पूर्ण देवता प्रसन्न हो सकते हैं। राजन्! छ: महीनेके भीतर कभी भी जनता इस सरोवरमें यह कमल देख लिया करती है। जो मनुष्य केवल इसका दर्शन करके जलमें पैर रख देता है, उसके सम्पूर्ण पाप भाग जाते हैं तथा वह पुरुष निर्वाणपदका अधिकारी हो जाता है; क्योंकि जलमें दीखनेवाली यह ब्रह्माजीकी प्रारम्भिक मूर्ति है। इस मूर्तिका दर्शनकर जो जलमें प्रवेश करता है, उसकी संसारसे मुक्ति हो जाती है। राजन्! तुम्हारा सारथि इस विग्रहको देखकर जलमें चला गया और जानेपर उसने इसे लेनेकी भी चेष्टा की। नरेश! इसका कारण यह था कि तुम्हारे मनमें लोभ उत्पन्न हो गया था एवं तुम्हारी बुद्धि नष्ट हो चुकी थी। इसीका परिणाम है कि तुम कोढ़ी बन गये हो। तुमने इनका दर्शन कर लिया है, जिसके कारण साधुकी श्रेणीमें आ गये। नरेश! साथ ही इस कमलको पानेके लिये तुम्हारे मनमें जो मोह उत्पन्न हो गया, इस कारण मैंने तुम्हें असाधु कहा।

देवताओंका भी कथन है कि 'मानसरोवरके ब्रह्मपद्म नामक कमलपर (ब्रह्मरूपमें) भगवान् श्रीहरि आकर विराजते हैं। उनका दर्शनकर हम उस ब्रह्मपदको पा जायेंगे, जहाँसे पुनः संसारमें आना नहीं पड़ता है। राजन् । यही कारण है कि तुम्हारे अङ्गमें कुष्ठ हो गया। इस कमलपर स्वयं भगवान् श्रीहरि सूर्यका रूप धारण करके विराजते हैं। वस्तुतः विचार किया जाय तो यह सनातन परब्रह्म परमात्माका ही रूप है। "मैं इसको अपने सिरपर धारण करूँ, जिससे मेरी प्रसिद्धि हो जाय' तुमने ऐसी भावना लेकर इसे प्राप्त करनेके लिये सारथिको भेजा। यह बेचारा सारथि तो उसी क्षण अपने प्राणोंसे हाथ धो बैठा और तुम्हारी देह कुष्ठरोगसे व्याप्त हो गयी। अतएव महाराज! तुम भी यह आरोग्य नामक व्रत करो। इस व्रतके करनेसे तुम कुष्ठरोगसे छुटकारा पा जाओगे।

ऐसा कहकर वसिष्ठजी राजाके पाससे चले गये। राजाने भी उनकी बात सुनकर प्रतिदिन उस सरोवरपर जाने और वहाँ ब्रह्माजीके दर्शन करनेका नियम बना लिया और फिर वे शीघ्र ही कुष्ठमुक्त होकर स्वस्थ एवं कृतार्थ हो गये।