
भगवान् रुद्र कहते हैं-द्विजवरो! उस मेरुपर्वतका पूर्वी देश परम प्रकाशमय है। उसमें चक्रपाद नामका एक पर्वत है, जिसकी अनेक धातुओंसे विद्योतित होनेसे अद्भुत शोभा होती है। इस परम रमणीय चक्रपाद पर्वतको सम्पूर्ण देवताओंकी पुरी कहते हैं। वहाँ किसीसे पराजित न होनेवाले बलाभिमानी देवताओं, दानवों और राक्षसोंका निवास है। उस पुरीमें सोनेकी बनी हुई चहारदीवारियाँ तथा मनोहर तोरण शोभा बढ़ाते रहते हैं। उस पुरीके ईशानकोणमें एक तेज:पूर्ण स्थानपर इन्द्रकी अमरावतीपुरी है। उस परम रमणीय पुरीमें सभी दिव्य पुरुष निवास करते हैं। सैकड़ों विमानोंकी वहाँ पतियाँ लगी रहती हैं। बहुत-सी वापियाँ उसकी शोभा बढ़ाती हैं। वहाँ हर्षका कभी भी ह्रास नहीं होता। बहुतसे रंग-बिरंगे फूल उसकी मनोहरता बढ़ाते रहते हैं। पताकाएँ एवं ध्वजाएँ माला-सी बनकर उसे अत्यन्त मनोमोहक बनाती हैं। ऋद्धि-सिद्धियोंसे परिपूर्ण उस पुरीमें देवता, यक्षगण, अप्सराएँ और ऋषिसमुदाय निवास करते हैं। उस पुरीके मध्य-भागमें हीरे एवं वैदूर्यमणिकी वेदीसे मण्डित 'सुधर्मा' नामकी सभा है, जो अपने गुणोंके कारण तीनों लोकों में प्रसिद्ध है। वहाँ समस्त सुरगण एवं सिद्ध-समुदायोंसे घिरे शचीपति सहस्राक्ष इन्द्र विराजते हैं।
इस अमरावतीपुरीसे कुछ दूर दक्षिणमें महाभाग अग्निदेवकी पुरी है, जो 'तेजोवती' नामसे प्रसिद्ध है तथा जिसमें अग्निके समान गुण पाये जाते हैं। उसके दक्षिणमें यमराजकी 'संयमनीपुरी' है। अमरावतीके नैर्ऋत्य कोणमें विरूपाक्षकी 'कृष्णवतीपुरी' है। उसके पीछे पश्चिम दिशामें जलके स्वामी महात्मा वरुणकी 'शुद्धवतीपुरी' है। इसी प्रकार उसके वायव्य कोणमें वायु देवताकी 'गन्धवतीपुरी' है। इस 'गन्धवती' के पीछे अर्थात् उत्तर दिशामें गुह्यकोंके स्वामी कुबेरकी मनोहर 'महोदयापुरी' है। इस पुरीमें वैदूर्यमणिसे बनी हुई वेदियाँ है। इसी प्रकार ब्रह्मलोककी आठवीं कर्णिका या अन्तर्पटपर ईशानकोणमें महान् पुरुष भगवान् रुद्रकी पुरी शोभा पाती है, जो 'मनोहरा' नामसे प्रसिद्ध है। इसमें अनेक प्रकारके भूतसमुदाय, विविध भाँतिके पुष्प, ऊँचे भवन, वन और आश्रम हैं, जिनसे उसकी अद्भुत शोभा होती है। भगवान् रुद्रका यह लोक सबके लिये प्रार्थनाकी विषय-अभिलषणीय वस्तु है।