72-प्रकृति और पुरुषका निर्णय

भगवान् वराह कहते हैं-वसुंधरे! महाभाग रुद्र सर्वज्ञानी, सबकी सृष्टिके प्रवर्तक, परम प्रभु एवं सनातन पुरुष हैं। उन्हें प्रणाम करके प्रयत्नशील हो अगस्त्यजीने उनसे यह प्रश्न किया।

अगस्त्यजीने पूछा-महाभाग रुद्र! ब्रह्मा, विष्णु और महेश इन तीन देवताओंके समुदायको सम्पूर्ण शास्त्रोंमें त्रयी कहा गया है। आप सभी महानुभाव सर्वव्यापी हैं। आपका तो ऐसा सम्बन्ध है, जैसे दीपक, अग्नि और दीपकको प्रज्वलित करनेवाला व्यक्ति। तीन नेत्रोंसे शोभा पानेवाले भगवन् ! मेरी यह जिज्ञासा है कि किस समय आपकी प्रधानता रहती है? कब विष्णु प्रधान माने जाते हैं? अथवा किस समय ब्रह्माकी प्रधानता होती है? आप यह बात मुझे बतानेकी कृपा कीजिये।

भगवान् रुद्रने कहा-द्विजवर! वैदिक सिद्धान्तके अनुसार परब्रह्म परमात्मा विष्णु ही ब्रह्मा, विष्णु एवं शिव-इन तीन भेदोंसे पठित एवं निर्दिष्ट हैं; पर माया-मोहित बुद्धिवाले इसे समझ नहीं पाते हैं। 'विश प्रवेशने' यह धातु है। इसमें 'स्नु' प्रत्यय लगा देनेसे 'विष्णु' शब्द निष्पन्न हो जाता है। इन विष्णुको ही सम्पूर्ण देवसमाजमें सनातन परमात्मा कहते हैं। महाभाग ! जो ये विष्णु हैं, वे ही आदित्य हैं। सत्ययुगसे सम्बन्धित श्वेतद्वीपमें उन दोनों महानुभावोंकी मैं निरन्तर स्तुति करता हूँ। सृष्टिके समय मेरे द्वारा ब्रह्माजीका स्तवन होता है और मैं कालरूपसे सुशोभित होता हूँ। ब्रह्मासहित सभी देवता और दानव सदा सत्ययुगमें मेरे स्तवनके लिये प्रयत्नशील रहते हैं। भोगकी इच्छा करनेवाला देवसमुदाय मेरी लिङ्ग-मूर्तिका यजन करता है। मुक्तिको इच्छा रखनेवाले मानव सहस्र मस्तकवाले जिन प्रभुका मनसे यजन करते हैं, वे ही विश्वके आत्मा स्वयं भगवान् नारायण हैं। द्विजवर! जो पुरुष ब्रह्मयज्ञके द्वारा निरन्तर यजन करते हैं, उनका प्रयास ब्रह्मको प्रसन्न करनेके लिये होता है। वेदको भी 'ब्रह्म' कहा जाता है। नारायण, शिव, विष्णु, शंकर और पुरुषोत्तम-इनमें केवल नामोंका ही भेद है। वस्तुतः इन सबको सनातन परब्रह्मा परमात्मा कहते हैं। विप्र! वैदिक कर्मसे सम्बन्ध रखनेवाले पुरुषोंके द्वारा ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश्वरइन नामोंका पृथक्-पृथक् उच्चारण होता है। हम तीनों मन्त्रके आदि देवता हैं, इसमें कुछ विचारनेकी आवश्यकता नहीं है। वैदिक कर्मके अवसरपर ही मेरा, विष्णुका तथा वेदोंका पार्थक्य है। वस्तुत: हम तीनों एक ही हैं। विद्वान परुषको चाहिये कि इसमें भेद-भावकी कल्पना न करे। उत्तम व्रतका आचरण करनेवाले द्विजवर! जो पक्षपातके कारण इसके विपरीत कल्पना करता है, वह पापी नरकमें जाता है। उसकी समझमें मैं रुद्र, ब्रह्मा और विष्णु तथा ऋग्, यजुः और साम-इनमें ऐसी भेद-भावना होती है।