79-मेरुपर्वतके जलाशय

भगवान् रुद्र कहते हैं-द्विजवरो! सीमान्त और कुमुदपर्वतोंके बीचकी अधित्यकामें अनेक पक्षी निवास करते हैं तथा वह विविध भाँतिके प्राणियोंद्वारा सेवित है। उसकी लम्बाई तीन सौ योजन और चौड़ाई सौ योजन है। उसमें एक स्वादिष्ठ तथा स्वच्छ जलवाला श्रेष्ठ जलाशय है, जिसकी विशाल सुगन्धित कमल-पुष्प निरन्तर शोभा बढ़ाते रहते हैं। इन विशाल आकृतिवाले कमलोंमें एक-एक लाख पत्ते हैं। वह जलाशय देवताओं, दानवों, गन्धर्वो और महान् सोसे कभी रिक्त नहीं रहता। उस दिव्य एवं पवित्र जलाशयका नाम 'श्रीसरोवर' है। सम्पूर्ण प्राणियोंको शरण देने में कुशल उस सरोवरमें सदा स्वच्छ जल भरा रहता है। उसके अन्तर्गत कमलवनके बीच एक बहुत बड़ा कमल है, जिसमें एक करोड़ पत्ते हैं। वह कमल मध्याह्न-कालीन सूर्यकी भाँति सदा प्रफुल्लित एवं प्रकाशमान रहता है। उसके सदा खिले रहनेसे मण्डलकी मनोहरता और अधिक बढ़ जाती है। सुन्दर केसरके खजानेकी तुलना करनेवाले उस कमलपर मतवाले भ्रमर निरन्तर गूंजते रहते हैं। इस कमलके मध्यभागमें साक्षात् भगवती लक्ष्मीका निवास है। इन देवीने अपने आवासके लिये ही उस कमलको अपना मन्दिर बना रखा है। इस सरोवरके तटपर सिद्धपुरुषोंके भी आश्रम हैं।

विप्रवरो! उसके पावन तटपर एक बहुत बड़ा मनोहर बिल्वका भी वृक्ष है। उसपर फूल और फल सदा लदे रहते हैं। वह सौ योजन चौड़ा और दो सौ योजन लम्बा है। उसके चारों ओर अन्य अनेक वृक्ष भी हैं, जिनकी ऊँचाई आधा कोस है। हजार शाखाओं और स्कन्धोंसे युक्त वह वृक्ष फलोंसे सदा परिपूर्ण रहता है। वे फल चमकीले, हरे और पीले रंगके हैं और उनका स्वाद अमृतके समान है। उनसे उत्कट गन्ध निकलती रहती है। वे विशाल आकारके फल जब पककर गिरते हैं तो जमीनपर तितरबितर हो जाते हैं। उस वनका नाम 'श्री'वन या 'लक्ष्मी'वन है, जो सभी लोकोंमें विख्यात है। उसके आठों दिशाओंमें देवता निवास करते हैं। ऐसे उस कल्याणप्रद बिल्व-वृक्षके *(* बिल्व एवं कमल-ये दोनों ही भगवती लक्ष्मीके आवास हैं।) पास उसके फलोंको खानेवाले पुण्यकर्मा मुनि सुरक्षा करने में सदा उद्यत रहते हैं। उसके नीचे लक्ष्मीजी सदा विराजती हैं और सिद्ध-समुदाय उसकी सेवामें सदा संलग्न रहता है।

विप्रवरो! वहाँ मणिशैल नामका एक महान् पर्वत है। उसके भीतर भी एक स्वच्छ कमलका वन है। उस वनकी लम्बाई दो सौ योजन और चौड़ाई सौ योजनकी है। सिद्ध और चारण वहाँ रहकर उसकी सेवा करते हैं। इन फूलोंको भगवती लक्ष्मी धारण करती हैं, अतः ये सदा प्रफुल्लित एवं प्रकाशमान प्रतीत होते हैं। उसके चारों ओर आधे कोसतक अनेक पर्वत-शिखर फैले हुए हैं। वह कमलका वन फूले हुए पुष्पोंसे सम्पन्न होनेके कारण जान पड़ता है, मानो पक्षियोंके रहनेका पिंजरा हो। उस वनमें बहुतसे कमल खिले हुए हैं। उन फूलोंका परिमाण दो हाथ चौड़ा और तीन हाथ लम्बा है। कुछ खिले हुए पुष्प मैनशिलाकी भाँति लाल और बहुत-से केसरके रंगके-से पीले हैं। वे तीव्र सुगन्धोंद्वारा देवताओंके मनको मुग्ध कर देते हैं। मतवाले भौंरोंकी गुनगुनाहटसे सम्पूर्ण वनकी शोभा विचित्र होती है। देवताओं, दानवों, गन्धर्वो, यक्षों, राक्षसों, किंनरों, अप्सराओं और महोरगोंसे सेवित उस वनमें प्रजापति भगवान् कश्यपजीका एक अत्यन्त दिव्य आश्रम है।

द्विजवरो ! महानील और ककुभ नामक पर्वतके मध्यभागमें भी एक बहुत बड़ा वन है। उसमें सिद्धों और साधुओंका समुदाय सदा निवास करता है। अनेक सिद्धोंके आश्रम वहाँ सुशोभित हैं। महानील और ककुभ नामक पर्वतोंके मध्यमें "सुखा' नामकी एक नदी है और उसीके तटपर यह महान् वन है, जो पचास योजन लम्बा तथा तीस योजन चौड़ा है। इस वनका नाम 'तालवन' है। वनकी छवि बढ़ानेवाले वृक्ष दृढ़, बड़ेबड़े फलोंसे युक्त तथा मीठी गन्धोंसे व्याप्त हैं, जिनसे वह पर्वत परिपूर्ण है। सिद्धलोग उसकी सेवा करते हैं। वहीं ऐरावत हाथीकी आकृतिवाली एक पर्वतीय भूमि है, जो ईरावान, रुद्रपर्वत एवं देवशील पर्वतोंके मध्य-भागमें स्थित है, हजार योजन लम्बी और सौ योजन चौड़ी है। यहाँ बस केवल एक ही विशाल शिला है, जिसपर एक भी वृक्ष अथवा लता नहीं है। विप्रवरो! इस शिलाका चतुर्थांश भाग जलमें डूबा रहता है। इस प्रकार उपत्यकाओं तथा पर्वतोंका वर्णन किया गया है, जो मेरुपर्वतके आस-पासमें यथास्थान शोभा पाते हैं।