
भगवान् वराह कहते हैं-वसुंधरे! भगवान् रुद्र पुराणपुरुष, शाश्वत देवता, यज्ञस्वरूप, अविनाशी. विश्वमय, अज, शम्भु, त्रिनेत्र एवं शूलपाणि हैं। उन सनातन प्रभुसे सम्पूर्ण ऋषियोंने पुनः प्रश्न किया।
ऋषिगण बोले-देवेश्वर! आप हम सम्पूर्ण देवताओंमें श्रेष्ठ हैं। अतः हम आपसे एक प्रश्न पूछ रहे हैं, इसे आप बतानेकी कृपा करें। उमापते! पृथ्वीका प्रमाण, पर्वतोंकी स्थिति और उनका विस्तार क्या है। देवेश्वर! कृपया इसका वर्णन करें।
भगवान् रुद्र कहते हैं-धर्मका पूर्ण ज्ञान रखनेवाले महाभाग ऋषियो! समस्त पुराणों में भूलोककी ही चर्चा की जाती है। यह लोक पृथ्वीतलपर है। मैं तुम्हारे सामने संक्षेपसे इसका वर्णन करता हूँ, इस प्रसङ्गको सुनो।
जिन परब्रह्म परमेश्वरका प्रसङ्ग चला है, उनका ज्ञान सम्पूर्ण विद्याओंकी जानकारीसे ही सम्भव है। उन्हींका नाम परमात्मा है। उनमें पापका लेशमात्र भी नहीं है। वे परमाणु-जैसा सूक्ष्म तथा अचिन्त्यरूप भी धारण कर लेते हैं। उन्हीं सम्पूर्ण लोकोंमें व्याप्त रहनेवाले पीताम्बरधारीका नाम नारायण है। पृथ्वी उन्हींके वक्षःस्थलपर टिकी है। वे दीर्घ, ह्रस्व, कृश, लोहित आदि गुणोंसे रहित तथा समस्त प्रपञ्चसे परे हैं। बहुत पहलेसे ही उनका यह रूप है। उनका स्वरूप केवल ज्ञानका विषय है। सृष्टिके आदिमें उन प्रभुमें सत्त्व, रज और तमके निर्माण करनेकी इच्छा हुई, अतः उन्होंने जलकी सृष्टि करके योगनिद्राकी सहायतासे उसमें शयन किया। फिर उनकी नाभिपर एक कमल उग आया। तब उस कमलपर जो सम्पूर्ण वेदों एवं ज्ञानके भंडार, अचिन्त्य स्वरूप, अत्यन्त शक्तिशाली तथा प्रजाओंक रक्षक कहे जाते हैं, वे ब्रह्मा प्रकट हुए। उन्होंने सनक, सनन्दन, सनातन और सनत्कुमार-प्रभृति धर्मज्ञानी पुत्रोंको सर्वप्रथम उत्पन्न किया और फिर स्वायम्भुव मनु, मरीचि आदि मुनियों तथा दक्ष आदि प्रजापतियोंकी सृष्टि की। भगवन् ! दक्षद्वारा सृष्ट स्वायम्भुव मनुसे इस भूमण्डलका विशेष विस्तार हुआ। उन महाभाग मनुमहाराजके भी दो पुत्र हुए, जिनके नाम क्रमशः प्रियव्रत और उत्तानपाद थे। प्रियव्रतसे दस पुत्रोंकी उत्पत्ति हुई। वे थे-आग्नीध्र, अग्निबाहु, मेध, मेधातिथि, ध्रुव, ज्योतिष्मान्, द्युतिमान्, हव्य, वपुष्मान् और सवन। उन प्रियव्रतने अपने सात पुत्रोंके लिये पृथ्वीके सात द्वीपोंके सात भाग बनाकर उनके रहनेकी व्यवस्था कर दी। उस समय महाभाग प्रियव्रतकी आज्ञासे आग्नीध्र जम्बूद्वीपके, मेधातिथि शाकद्वीपके, ज्योतिष्मान् क्रौञ्चद्वीपके, द्युतिमान् शाल्मलिद्वीपके, हव्य गोमेदद्वीपके, वपुष्मान् प्लक्षद्वीपके तथा सवन पुष्करद्वीपके शासक हुए। पुष्करद्वीपके शासक सवनसे दो पुत्रोंका जन्म हुआ। वे पुत्र महावीति (कुमुद) और धातक नामसे प्रसिद्ध रहे हैं। उनके लिये सवनने उन्हींके नामसे पुकारे जानेवाले दो देशोंका निर्माण किया। धातकका राज्यखण्ड 'धातकीखण्ड' के नामसे तथा कुमुदका राज्यखण्ड 'कौमुदखण्ड' के नामसे प्रसिद्ध हुआ। शाल्मलिद्वीपके स्वामी द्युतिमान्के तीन पुत्र हुए। उनके नाम कुश, वैद्युत और जीमूतवाहन थे। शाल्मलिद्वीपके देश भी उन्हींके नामोंसे विख्यात हुए। ज्योतिष्मान्के सात पुत्र हुए। उनके नाम कुशल, मनुगव्य, पीवर, अन्ध्र, अन्धकारक, मुनि और दुन्दुभि थे। उनके नामपर क्रौञ्चद्वीपमें सात महादेश हुए। कुशद्वीपके स्वामी कुश बड़े प्रतापी थे। उनके सात पुत्र हुए। वे उद्भिद्, वेणुमान्, रथपाल, मनु, धृति, प्रभाकर और कपिल नामसे प्रसिद्ध हुए। उस द्वीपमें उनके नामपर भी सात वर्ष (देश) हैं। शाकद्वीपके स्वामी मेधातिथिके सात पुत्र हुए। उनके नाम इस प्रकार हैं-नाभि, शान्तभय, शिशिर, मुखोदम, नन्दशिव, क्षेमक और ध्रुव।
इस द्वीपमें उन्हींके नामसे प्रसिद्ध उनके ये वर्ष भी हैं-हेमवान्, हेमकूट, किम्पुरुष, नैषध, हरिवर्ष, मेरुमध्य, इलावृत, नील, रम्यक्, श्वेत, हिरण्मय और शृङ्गवान्। पर्वतके उत्तरी भागमें उत्तरकुरु, माल्यवान् हैं। भद्राश्व और गन्धमादनपर महाराज नाभिका शासन आरम्भ हुआ। केतुमालवर्षपर भी उन्हींका शासन हुआ। इसी प्रकार स्वायम्भुव मन्वन्तरमें भूमण्डलकी व्यवस्था हुई है। प्रत्येक कल्पके आरम्भमें प्रधान मनुओंद्वारा भूमण्डलके विभाजन एवं पालनका ऐसा ही | प्रबन्ध होता आया है। कल्पकी यह स्वाभाविक व्यवस्था है और भविष्यमें भी सदा ऐसा ही होगा।
अब महाभाग! मैं नाभिकी संतानका वर्णन करता हूँ-नाभिकी धर्मपत्नीका नाम मेरुदेवी था। उन्होंने ऋषभ नामक पुत्रको जन्म दिया। ऋषभसे भरत नामक पुत्रकी उत्पत्ति हुई। भरत सबसे बड़े पुत्र हुए। अतएव उनके पिता ऋषभने हिमाद्रि पर्वतके दक्षिण भागमें भारत नामके इस महान् वर्षका उन्हें शासक बना दिया। भरतसे सुमतिका जन्म हुआ। सुमतिको अपना राज्य देकर भरत जंगल में चले गये। सुमतिके तेज, तेजके सत्सुत, सत्सुतके इन्द्रद्युम्न, इन्द्रद्युम्नके परमेष्ठी, परमेष्ठीके प्रतिहर्ता, प्रतिहर्ताके निखात, निखातके उन्नेता, उन्नेताके अभाव, अभावके उद्गाता, उद्गाताके प्रस्तोता, प्रस्तोताके विभु, विभुके पृथु, पृथुके अनन्त, अनन्तके गय, गयके नय, नयके विराट, विराट्के महावीर्य और महावीर्यके सुधीमान् पुत्र हुए। सुधीमान्से सौ पुत्रोंकी उत्पत्ति हुई। इस प्रकार इन प्रजाओंकी निरन्तर वृद्धि होती गयी। उनसे सात द्वीपोंवाली यह पृथ्वी तथा भारतवर्ष सर्वथा व्याप्त हो गया। उनके वंशमें उत्पन्न हुए राजाओंसे यह भूमण्डल पालित होता आया है। सत्ययुग, त्रेता आदि युगों एवं महायुगोंसे परिपूर्ण एकहत्तर चतुर्युगका एक मन्वन्तर कहा जाता है। भुवनके प्रसङ्गमें मैंने यह स्वायम्भुवमन्वन्तरकी बात कही।