
भगवान् रुद्र कहते हैं-द्विजवरो! अब उन पर्वतोंके पृष्ठभागमें स्थित अत्यन्त रम्य चार पर्वतोंका वर्णन करता हूँ। पक्षी अपने कलरवसे उनके शृङ्गोंकी शोभा बढ़ाते रहते हैं। ये पर्वत देवताओं एवं देवाङ्गनाओंके साथ-साथ विहार करनेके लिये मानो क्रीडास्थल हैं। शीतल तथा मन्दगतिसे प्रवाहित तथा सुगन्धपूर्ण पवनसे युक्त उन शिखरोंकी किंनरगण सदा सेवा करते हैं, इससे उनकी रमणीयता और बढ़ जाती है। इन चारों पर्वतोंके पूर्वमें चैत्ररथ वन और दक्षिणमें गन्धमादन पर्वत स्थित है। उन पर्वतोंपर स्वादिष्ठ जलसे परिपूर्ण कई सरोवर भी हैं, जिनका पर्वतके सभी भागोंसे सम्बन्ध है। यह वह रमणीय स्थान है, जहाँ देवसमुदाय अपनी रमणियोंके सहित अनेक दुर्गम वन-प्रान्तोंको लाँघकर आता और बड़े हर्षका अनुभव करता है। परम पवित्र जल तथा रत्नोंसे पूर्ण बहुत-से सरोवर, झील एवं जलाशय वहाँकी शोभा बढ़ाते हैं। खिले हुए नील, स्वच्छ एवं लाल कमलोंसे उन जलाशयोंकी सुन्दरता सीमा पार कर जाती है। ये सभी पर्वत विविध प्रकारके दिव्य गुणोंसे सम्पन्न हैं। इनके पूर्वमें अरुणोद, दक्षिणमें मानसोद, पश्चिममें असितोद और उत्तरमें महाभद्र नामक सरोवर हैं। श्वेत, कृष्ण एवं पीले रंगके कमलोंसे इन सरोवरोंकी अनुपम शोभा होती है। अरुणोद-सरोवरके पूर्वी भागमें जो पर्वत प्रसिद्ध हैं, उनके नाम बतलाता हूँ, सुनो। वे हैं विकङ्क, मणिशृङ्ग, सुपात्र, महोपल, महानील, कुम्भ, सुविन्दु, मदन, वेणुनद्ध, सुमेदा, निषध और देवपर्वत । वे सभी पर्वत अपने समुदायमें सर्वोत्कृष्ट एवं पवित्र भी हैं। - अब मानससरोवरके दक्षिण भागमें जो महान् पर्वत बताये गये हैं, उनके नाम बतलाता हूँ, सुनो-तीन चोटियोंवाला त्रिशिखर, गिरिश्रेष्ठ शिशिर, कपि, शताक्ष, तुरग, सानुमान, ताम्राह, विष, श्वेतोदन, समूल, सरल, रत्नकेत, एकमूल, महाशृङ्ग, गजमूल, शावक, पञ्चशैल और कैलास-ये प्रधान और रमणीय पर्वत मानससरोवरके पश्चिमी भागमें हैं। विप्रो! महाभद्र-सरोवरके उत्तरमें जो पर्वत विद्यमान हैं, अब उनके नाम कहता हूँ, सुनो। हंसकूट, महान् पर्वत वृषहंस, कपिञ्जल, गिरिराज इन्द्रशैल, सानुमान्, नील, कनकशृङ्ग, शतशृङ्ग, पुष्कर, महान् एवं सर्वोत्कृष्ट विराज तथा पर्वतराज भारुचि। वे सभी पर्वत उत्तर-गिरि कहे गये हैं। उनके उत्तरीय भागमें कुछ ग्राम, नगर तथा जलाशय हैं।