
भगवान् वराह बोले-नारदजीके चले जानेपर महिषासुर सदा चकितचित्तसे उसी कन्याका ध्यान करने लगा। अतः उसे तनिक भी कहीं चैन न था। अब उसने अपने मन्त्रिमण्डलको बुलाया। उसके आठ मन्त्री थे, जो सभी शूरवीर, नीतिमान् एवं बहुश्रुत थे। वे थे-प्रघस, विघस, शङ्ककर्ण, विभावसु, विद्युन्माली, सुमाली, पर्जन्य और क्रूर। वे महिषासुरके पास आकर बोले कि 'हमलोगोंके लिये जो सेवाकार्य हो, आप उसकी तुरंत आज्ञा कीजिये।' उनकी बात सुनकर दैत्योंका शासक पराक्रमी महिषासर बोला-'नारदजीके कथनानुसार मैंने एक कन्याको पानेके लिये तुमलोगोंको यहाँ बुलाया है। मन्त्रियो! देवर्षि नारदने मुझे एक लड़कीकी बात बतायी है; किंतु देवताओंके स्वामी इन्द्रको जीते बिना उसकी प्राप्ति सम्भव नहीं है। अब आप सब लोग विचारकर शीघ्र बतायें कि वह कन्या किस प्रकार सुलभ होगी और देवता कैसे पराजित होंगे?'
महिषासुरके ऐसा कहनेपर सभी मन्त्री अपनाअपना मत बतलाने लगे। प्रघस बोला-'दैत्यवर! आपसे नारदमुनिने जिस कन्याकी बात कही है, वह महान् सती है। उसका नाम 'वैष्णवी देवी है। उस सुन्दर रूप धारण करनेवाली देवीको पराशक्ति कहा जाता है। जो गुरुकी पत्नी, राजाकी रानी तथा सामन्त, मन्त्री या सेनापतिकी स्त्रियोंके अपहरणकी इच्छा करता है, वह राजा शीघ्र ही नष्ट हो जाता है। प्रघसके इस प्रकार कहनेपर विघसने कहा'राजन् ! उस देवीके विषयमें प्रघसने सत्य बात ही बतलायी है। यदि सब लोगोंका एक मत हो जाय और बुद्धि इस बातका समर्थन करे तो सर्वप्रथम हमें उस कन्याका वरण ही करना चाहिये। परंतु स्वच्छन्दतापूर्वक उसका बलात् अपहरण या अपकर्षण कदापि ठीक नहीं है। मन्त्रिवरो! यदि मेरी बात आपलोगोंको रुचे तो हम सभी मन्त्री उस देवीके पास चलकर प्रार्थना करें। पहले साम-नीतिसे ही काम लेना चाहिये। यदि इससे काम न बने तो हमलोगोंको दानका आश्रय लेना चाहिये। इतनेपर भी काम न बने तो भेद-नीतिका सहारा लिया जाय और यदि इतनेपर भी काम न बने, तो अन्तमें दण्डका प्रयोग करना चाहिये। इस क्रमसे नीतियोंका प्रयोग करनेपर भी यदि वह कन्या न मिल सके तो हम सभी लोग अपने अस्त्र-शस्त्रोंसे सुसज्जित होकर चलें और फिर बलपूर्वक उसे देवताओंसे छीन लें।
विघसके इस प्रकार कहनेपर अन्य मन्त्री बोले, उस सुन्दरी कन्याके विषयमें विघसने जो बात कही है, वह बहुत ही युक्त है। हमलोग यथाशीघ्र वही करें। अब शास्त्रोंके जानकार, नीतिज्ञ, पवित्र और शक्तिसम्पन्न एक दूतको वहाँ भेज दिया जाय। दूतके द्वारा उसके रूप, पराक्रम, शौर्य-गर्व, बल, बन्धुओंके सहयोग, सामग्री, रहनेके साधन आदिकी जानकारी प्राप्तकर उस देवीको प्राप्त करनेके लिये प्रयत्न करना चाहिये।
जब विघसने सभामें यह बात कही तो सब लोग उसे 'साधु-साधु' (बहुत ठीक) कहने लगे। सुन्दरि! तदनन्तर सभी मन्त्रियोंने मन्त्रि श्रेष्ठ विघसकी प्रशंसा की और साथ ही उस देवीको देखनेके लिये सभी लक्षणोंसे युक्त 'विद्युत्प्रभनामक' दूतको भेजा। इधर महिषासुरके मन्त्रियोंने मन्त्रिमण्डलकी पुनः बैठक बुलायी और परस्पर परामर्शकर उसे उस कन्याको शीघ्र प्राप्त करनेके लिये देवताओंपर आक्रमणकर विजय प्राप्त करनेकी सलाह दी। महिषकी सेनामें उस समय नौ पद्मकी संख्यामें असुर योद्धा थे। उसने अपने सेनापति विरुपाक्षको ससैन्य युद्धके लिये प्रस्थान करनेकी आज्ञा दी।
भगवान् वराह कहते हैं-वसुंधरे ! इस सारी सेनाके साथ इच्छानुसार रूप धारण करनेवाला महान् पराक्रमी महिषासुर हाथीपर सवार होकर मन्दराचल पर्वतपर पहुँचा। उसके वहाँ पहुँचते ही देवसमुदायमें भगदड़ मच गयी। सभी असुरसैनिकोंने अपने-अपने शस्त्रों और वाहनोंके साथ गम्भीर गर्जना करते हुए देवताओंपर आक्रमण कर दिया। उनका तुमुल युद्ध देखकर रोंगटे खड़े हो जाते थे। अञ्जनके समान काले नीलकुक्षि, मेघवर्ण, बलाहक, उदाराक्ष, ललाटाक्ष, सुभीम, भीमविक्रम और स्वर्भान-इन आठ दैत्योंने मोर्चेपर वसुओंको मारना आरम्भ किया। इधर ध्वाक्ष, ध्वस्तकर्ण, शङ्ककर्ण, वज्रके समान कठोर अङ्गोंवाला ज्योतिवीर्य, विद्युन्माली, रक्ताक्ष, भीमदंष्ट्र, विद्युज्जिह्व, अतिकाय, महाकाय, दीर्घबाहु और कृतकान्त-ये प्रधान गिने जानेवाले बारह दैत्य युद्ध-भूमिमें आदित्योंकी ओर दौड़े। काल, कृतान्त, रक्ताक्ष, हरण, मृगहा, नल, यज्ञहा, ब्रह्महा, गोघ्न, स्त्रीन और संवर्तक-इन ग्यारह दैत्योंने रुद्रोंपर चढ़ाई कर दी। महिषासुर भी उन देवताओंकी ओर बड़े वेगसे दौड़ा। इस प्रकार आदित्यों, वसुओं और रुद्रोंके साथ अगणित संख्यामें असुर और राक्षस लड़ने लगे। उस युद्धभूमिमें असुरोंके द्वारा देवताओंके सैनिक बड़े परिमाणमें नष्ट हो गये। अन्तमें देवताओंकी सेना भग्न हो गयी और इन्द्र तथा सम्पूर्ण देवता उस युद्ध-भूमिमें ठहर न सके। दानवोंने उन्हें अनेक प्रकारके शस्त्रों, शूलों, पट्टिशों और मुद्गरोंसे अर्दित कर दिया था। अन्तमें दानवोंसे पीड़ित होकर ये सभी देवता ब्रह्माजीके लोकमें गये।