82-नदियोंका अवतरण

भगवान् रुद्र कहते हैं-अब आपलोग नदियोंका अवतरण सुनें-जिसे आकाश-समुद्र कहते हैं, उसीसे आकाशगङ्गाका प्रादुर्भाव हुआ है। यह आकाश-समुद्र प्रायः निरन्तर इन्द्रके ऐरावत हाथीद्वारा (स्नानादि करनेसे) क्षुभित एवं बाधित होता रहता है। फिर वह आकाशगङ्गा चौरासी हजार योजन ऊपरसे मेरुपर्वतपर गिरती है। वहाँसे मेरुकूटकी उपत्यकाओंसे नीचे बहती हुई वह चार भागोंमें विभक्त हो जाती है। आश्रयहीन होनेके कारण चौंसठ हजार योजन दूरसे गिरती हुई वह नीचे उतरती है। यही नदी भूभागपर पहुँचकर सीता, अलकनन्दा, चक्षु एवं भद्रा आदि नामोंसे विख्यात होती है। इन नदियोंके बीचमें इक्यासी हजार पर्वतोंको लाँघती हुई 'गो' अर्थात् पृथ्वीपर गमन करनेके कारण इसे ही जनता 'गां गता'-'गङ्गा' कहती है।

अब 'गन्धमादन के पार्श्वभागमें स्थित अमरगण्डिकाका वर्णन करता हूँ। वह चार सौ योजन चौड़ी और तीस योजन लम्बी है। उसके तटपर केतुमाल नामसे प्रसिद्ध अनेक जनपद हैं। वहाँके निवासी पुरुष काले वर्णवाले एवं अत्यन्त पराक्रमी हैं। यहाँकी स्त्रियाँ कमलके समान नेत्रोंवाली परम सुन्दर होती हैं। वहाँ कटहलके वृक्ष विशेषतया बड़े-बड़े होते हैं। ब्रह्माजीके पुत्र ईशान-शिव ही वहाँकै शासक हैं। उसका जल पीनेसे प्राणियोंके पास बुढ़ापा और रोग नहीं आ सकते तथा वे मनुष्य हजार वर्षकी आयुसे सम्पन्न और हृष्ट-पुष्ट रहते हैं। माल्यवान्पर्वतके पूर्वी शिखरसे 'पूर्वगण्डिका'का प्रादुर्भाव हुआ है। इसकी लम्बाई-चौड़ाई हजार योजन है। वहाँपर भद्राश्व नामसे प्रसिद्ध अनेक जनपद हैं। वहीं भदरसाल नामका एक वन है। कालाम्न नामक वृक्षोंकी संख्या तो अनगिनत है। वहाँके पुरुष श्वेतवर्णके और स्त्रियाँ कमल अथवा कुन्दवर्णकी होती हैं। उन सबकी आयु दस हजार वर्षकी है। वहाँ पाँच 'कुल'-पर्वत हैं। वे पर्वत शैल वर्ण, मालाख्य, 'कोरजस्क' त्रिपर्ण और नील नामसे विख्यात हैं। वहाँसे झील-झरनों एवं सरोवरोंके तटवर्ती जनपदोंके नाम भी प्रायः वैसे ही हैं। वहाँके देशवासी उन्हीं नदियोंके जल पीते हैं। उन नदियोंके नाम इस प्रकार हैं-सीता, सुवाहिनी, हंसवती, कासा, महावक्रा, चन्द्रवती, कावेरी, सुरसा, आख्यावती, इन्द्रवती, अङ्गारवाहिनी, हरित्तोया, सोमावर्ता, शतहदा, वनमाला, वसुमती, हंसा, सुपर्णा, पञ्चगङ्गा, धनुष्मती, मणिवप्रा, सुब्रह्मभोगा, विलासिनी, कृष्णतोया, पुण्योदा, नागवती, शिवा, शैवालिनी, मणितटा, क्षीरोदा, वरुणताली और विष्णुपदी। जो इन पुण्यमयी नदियोंका जल पीते हैं, उनकी आयु दस हजार वर्षकी हो जाती है। यहाँके निवासी सभी स्त्रीपुरुष भगवान् रुद्र और उमाके भक्त हैं।