86-87-शाक एवं कुश-द्वीपोंका वर्णन

भगवान् रुद्र कहते हैं-अब आपलोग शाकद्वीपका वर्णन सुनें। जम्बूद्वीप अपने दूने परिमाणके लवण-समुद्रद्वारा आवृत है। गोलाईमें भी यही जम्बूद्वीपके दूने परिमाणमें है। यहाँके निवासी बड़े पवित्र और दीर्घजीवी होते हैं। दरिद्रता, बुढ़ापा और व्याधिका उन्हें पता नहीं रहता। इस शाकद्वीपमें भी सात ही कुलपर्वत हैं। इस द्वीपके दोनों ओर समुद्र हैं-एक ओर लवणसमुद्र और दूसरी ओर क्षीरसमुद्र। वहाँ पूर्वमें फैला हुआ महान् पर्वत उदयाचलके नामसे प्रसिद्ध है। उसके ऊपर (पश्चिम) भागमें जो पर्वत है, उसका नाम 'जलधार' है। उसीको लोग 'चन्द्रगिरि' भी कहते हैं। इन्द्र वहींसे जल लेकर (संसारमें) वर्षा करते हैं। उसके बाद 'श्वेतक'-नामक पर्वत है। उसके अन्तर्गत छ: छोटे-छोटे दूसरे पर्वत हैं। वहाँकी प्रजा इन पर्वतोंपर अनेक प्रकारसे मनोरञ्जन करती है। उसके बाद रजतगिरि है। उसीको जनता शाकगिरि भी कहती है। उसके बाद 'आम्बिकेय' पर्वत है, जिसे लोग 'विभ्राजक' तथा केसरी भी कहते हैं। वहींसे वायुका प्रवाह आरम्भ होता है। जो कुलपर्वतोंके नाम हैं, उन्हीं नामोंसे वहाँके वर्षों या खण्डोंकी भी प्रसिद्धि है। वे कुलपर्वत इस प्रकार हैं-उदय, सुकुमार, जलधार, क्षेमक और महाद्रुम। पर्वतोंके दूसरे-दूसरे नाम भी हैं। उसके मध्यमें शाक नामका एक वृक्ष है। वहाँ सात बड़ी-बड़ी नदियाँ हैं। एक-एक नदीके दो-दो नाम हैं। ये हैं-सुकुमारी, कुमारी, नन्दा, वेणिका, धेनु, इक्षुमती और गभस्ति।

भगवान् रुद्र कहते हैं-अब आपलोग कुश नामक तीसरे द्वीपका वर्णन सुनें। यह द्वीप विस्तारमें शाकद्वीपसे दूने परिमाणवाला है। क्षीरसमुद्रके चारों ओर कुशद्वीप है। यहाँ भी सात कुलपर्वत हैं। उन सभी पर्वतोंके एक-एकके दो-दो नाम हैं। जैसे-कुमुदपर्वत, इसीका दूसरा नाम 'विद्रुम' भी है। इसी प्रकार दूसरा पर्वत उन्नत भी हेम नामसे विख्यात है, तीसरा पर्वत द्रोण या पुष्पवान् नामसे विख्यात है, चौथा कङ्क या कुश है, पाँचवाँ पर्वत ईश या अग्निमान् है, छठा पर्वत महिष या हरि है। इसपर अग्निका निवास है और सातवाँ ककुध्र या मन्दर है। ये पर्वत कुशद्वीपमें व्यवस्थित हैं।

इन पर्वतोंसे विभाजित भूभाग ही विभिन्न वर्ष या खण्ड हैं। उनमें एक-एक वर्षके दो-दो नाम हैं। जैसे-कुमुदपर्वतसे सम्बन्धित वर्ष श्वेत या उद्भिद् कहा जाता है। उन्नतगिरिका वर्ष लोहित या वेणुमण्डल नामसे विख्यात है। वलाहकपर्वतका वर्ष जीमूत या रथाकर नामसे भी प्रसिद्ध है। द्रोणगिरिके पासके वर्षको कुछ लोग हरिवर्ष कहते हैं और दूसरे बलाधन। यहाँ भी सात नदियाँ हैं। उनमें प्रत्येक नदीके भी दो-दो नाम हैं। जैसे-पहली नदी 'प्रतोया' है। उसीका दूसरा नाम 'प्रवेशा' है। दूसरी नदी 'शिवा' नामसे विख्यात है, जिसका एक नाम 'यशोदा' भी है। तीसरी नदीको 'चित्रा' कहते हैं। उसीकी एक संज्ञा 'कृष्णा' है। चौथी 'हादिनी'को लोग "चन्द्रा' भी कहते हैं। पाँचवीं नदी 'विद्युल्लता' नामसे प्रसिद्ध है। इसका दूसरा नाम 'शुक्ला' है। छठी नदी 'वर्णा' कहलाती है। उसका एक नाम "विभावरी' भी है। सातवीं नदीकी संज्ञा 'महती' है। इसीको लोग 'धृति' भी कहते हैं। ये सभी नदियाँ अपना प्रधान स्थान रखती हैं। यहाँ अन्य छोटी-छोटी बहुत-सी नदियाँ हैं। यह कुशद्वीपके अवान्तर भागका वर्णन है। शाकद्वीप शास्त्रोंमें इसके दूने उपकरणोंसे युक्त है, प्रायः ऐसी बात कही जाती है। कुशद्वीपके मध्यमें एक बहुत बड़ी कुशकी झाड़ी है। इसलिये इसका नाम 'कुशद्वीप' पड़ा। अमृतकी तुलना करनेवाले दधिमण्डोदसमुद्रसे, जो मानमें 'क्षीरसमुद्र'का दुगुना है, घिरा हुआ है।